बाबू श्याम सुन्दर दास जी का जीवन एवं साहित्यिक परिचय

बाबू श्याम सुन्दर दास जी का जीवन एवं साहित्यिक परिचय

बाबू श्याम सुन्दर दास जी का जीवन एवं साहित्यिक परिचय : Shyam Sundar Das Ka Jivan aur Sahityik Parichay in Hindi

बाबू श्याम सुन्दर दास जी का जीवन एवं साहित्यिक परिचय : नमस्कार साथियों, स्वागत है आप सभी का एक और नये आर्टिकल में । आइए आज के इस आर्टिकल के माध्यम से जानेंगें महान साहित्यकार बाबू श्याम सुन्दर दास के जीवन एवं साहित्यिक परिचय के बारें में ।

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बाबू श्याम सुन्दर दास जी का जीवन एवं साहित्यिक परिचय

बाबू श्याम सुन्दर दास जी का जीवन परिचय

पूरा नाम डाँ. श्याम सुन्दर दास
जन्म दिवस एवं स्थान सन् 1875 ई. , काशी (वाराणसी), उत्तरप्रदेश
पिता का नाम देवीदास खत्री
माता जी का नाम देवकी देवी
बीए कि डिग्री काशी हिन्दु विश्वविद्यालय
लेखन काल आधुनिक काल (द्विवेदी युग)
प्रसिद्धि काशी नागरी प्रचारिणी संस्था के संस्थापक
उपाधि साहित्य वाचस्पति, डी. लिट्स.
मृत्यु दिवस सन् 1945 ई.

द्विवेदी युग के महान् साहित्यकार बाबू श्यामसुन्दरदास जी का जन्म सन् 1875 ई० में काशी के प्रसिद्ध खत्री परिवार में हुआ था। इनका बचपन का जीवन बहुत ही सुख और आनन्द से बीता। सबसे पहले इन्हें संस्कृत की शिक्षा दी गयी, उसके बाद परीक्षाएँ उत्तीर्ण करते हुए सन् 1897 ई० में बी० ए० पास किया। बाद में इनकी आर्थिक स्थिति बहुत दयनीय हो गई थी, जिसके कारण इन्हें चन्द्रप्रभा प्रेस में 40 रुपये मासिक वेतन पर नौकरी करनी पड़ी। इसके बाद सन् 1899 ई० में काशी के हिन्दू स्कूल में कुछ दिनों तक अध्यापन कार्य किया, फिर लखनऊ के कालीचरण हाईस्कूल में प्रधानाध्यापक हो गये। इस पद पर श्यामसुन्दर जी ने नौ वर्ष तक कार्य किया। इन्होंने 16 जुलाई, सन् 1893 ई० को विद्यार्थी-काल में ही अपने दो सहयोगियों रामनारायण मिश्र और ठाकुर शिवकुमार सिंह की सहायता से ‘नागरी प्रचारिणी सभा’ की स्थापना की।

अन्त में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में हिन्दी विभाग के अध्यक्ष हो गये और अवकाश ग्रहण करने तक इसी पद पर बने रहे। निरन्तर कार्य करते रहने के कारण इनका स्वास्थ्य गिर गया और सन् 1945 ई० में इनकी मृत्यु हो गयी।

बाबू श्याम सुन्दर दास जी का साहित्यिक परिचय

द्विवेदी युग के महान् गद्यकार डॉ० श्यामसुन्दरदास जी ने निरंतर साहित्य साधना करते हुए हिंदी-साहित्य जगत् में अपूर्व वृद्धि की। इन्होंने हिन्दी भाषा को परिष्कृत रूप प्रदान करने और मातृभाषा का प्रचार करने की दृष्टि से भी अविस्मरणीय योगदान दिया। हिंदी साहित्य में बाबू श्यामसुन्दरदास जी का हिन्दी प्रचारक और हिन्दी उन्नायक के रूप में विशेष महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है।
अपने जीवन में श्यामसुन्दरदास जी ने पचास वर्षों तक लगातार हिन्दी की सेवा की। हिन्दी में उन्होंने कोश, इतिहास, काव्यशास्त्र, भाषा-विज्ञान, शोधकार्य, उपयोगी साहित्य, पाठ्य-पुस्तक और सम्पादित ग्रन्थ आदि से समृद्ध किया, उसके महत्व की प्रतिष्ठा की, उसकी आवाज को जन-जन तक पहुँचाया, उसे खण्डहरों से उठाकर विश्वविद्यालयों के भव्य-भवनों में प्रतिष्ठित किया। वह अन्य भाषाओं के समकक्ष बैठने की अधिकारिणी हुई। हिन्दी साहित्य सम्मेलन ने इन्हें ‘साहित्य वाचस्पति’ और काशी हिन्दू विश्वविद्यालय ने ‘डी0 लिट्’ की उपाधि देकर इनकी साहित्यिक सेवाओं की महत्ता को स्वीकार किया।

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